हम मे से अधिकतर लोग
राहू-केतू का नाम सुनते ही घबरा जाते है। और फिर घबराना भी लाज़मी है,
इसलिए नहीं की ये वाकई मे हमे डराते है; बल्कि इनका नाम लेकर कुछ
धूर्त और पाखंडी लोग आप को डराते है और आपकी मजबूरिओ का गलत फायदा उठाके आपको
लूटते भी है। लेकिन ऐसी कोई डर वाली बात बिल्कुल भी नहीं है।
जो खगोलीय तंत्र है उसमे कई
सारी गेलेक्सी यानि आकाशगंगा है। इसी तरह हम मिल्कि-वे आकाशगंगा का हिस्सा है, और
हमारा अपना एक सोलर सिस्टम है। इसमे हमारे केंद्र सूर्य के चारो ओर कई ग्रह और साथ
ही उनके अपने-अपने उपग्रह भी चक्कर काटते है और ये पूरा सोलर सिस्टम हमारी
आकाशगंगा के चक्कर लगा रहा है।
सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा का परिसंचरण तंत्र
हमारी जो पृथ्वी है वो सूर्य के चारो ओर एक तल मे जिसे ‘एक्लिप्टिक’ कहा जाता है, चक्कर लगाती है और हमारा इसका उपग्रह चंद्रमा भी अपने ही एक अलग तल मे पृथ्वी का चक्कर लगाता है। तो इस तरह चंद्रमा एक्लिप्टिक तल को एक रेखा मे काटता है।
राहू-केतू की संकल्पना
एक्लिप्टिक तल को काटते हुए जिस बिंदु से चंद्रमा ऊपर की ओर उठता हुआ दिखाई देता है तो उसे राहू कहते है। ठीक इसी तरह जिस बिंदु से चंद्रमा नीचे की ओर ढलता हुआ या अस्त होता हुआ दिखाई देता है उसे केतू कहा जाता है। हमारी भारतीय पौराणिक कथाओ मे इसे सरल भाव से समझाने हेतु इसे एक असुर बताया गया है जिसका कटा हुआ सिर यानि ऊपरी हिस्सा सूर्य को खा जाता है या ग्रहण लगाता है और बाकी का निचला हिस्सा चंद्रमा को ग्रहण लगाता है, पर ऐसा क्या मुमकिन है ज़रा सोचिए! ये सिर्फ उस वक़्त इस बात को सरल लहज़े मे समझाने का तरीका था बस और कुछ नहीं। और इसी बात का फायदा लेकर लोगो को अंधविश्वास के जरिये से डराकर कई लोग अपना उल्लू सीधा करते है।
इस संकल्पना का महत्व
दरअसल खगोलीय तंत्र के अनुसार ये दोनों बिंदु जहा से चंद्रमा उदय और अस्त होता हुआ दिखता है वो एक काल्पनिक बिंदु है पर बहुत ख़ास है क्यूंकी इसी से सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण का निर्धारण होता है। जब चंद्रमा ऊपर की ओर जाते हुए एक्लिप्टिक तल को काटता है तो सूर्य-चंद्रमा-पृथ्वी एक ही रेखा मे होते है ओर उस वक़्त चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच मे होता है जिसे हम सूर्यग्रहण के नाम से जानते है।
ठीक इसी तरह जब
चंद्रमा नीचे की ओर जाते हुए एक्लिप्टिक तल को काटता हैं तब भी
सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा एक ही रेखा मे होते है मगर उस वक़्त पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा
के बीच मे आ जाती है, जिसे हम चंद्रग्रहण के नाम से जानते है।
निष्कर्ष
राहू-केतू मात्र छाया बिंदु है और इन्हे छाया ग्रह भी कहा जाता है, पर ये पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य और चंद्रमा के सिस्टम पे बहुत असर डालते है इसलिए ज्योतिष शास्त्र मे इन्हे ग्रह का दर्जा हासिल है। अब चूंकि हम भी पृथ्वी के संग घूम रहे है इसलिए हम भी एक तरह से खगोलीय पिण्ड ही है और हम पे भी इसका असर होना लाज़मी है।
तो अगर कोई आपको
राहू-केतू से डराए या आपको भ्रम के मायाजाल मे उलझाकर आपकी भावनाओ का नाजायज़ फायदा
उठाए तो ‘अपने विवेक और
सहजबुद्धि से काम ले और मुसीबतों से घबराए नहीं, स्थिति चाहे कैसी भी हो उसका सामना करे’।
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